राष्ट्रभक्ति की पराकाष्ठा Shivrajsinh‘Sneh’ દ્વારા પુષ્તક અને વાર્તા PDF

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राष्ट्रभक्ति की पराकाष्ठा

हमारा इतिहास अनेक वीरों और वीरांगनाओं के बलिदानों से भरा पड़ा है | उनके विचार, उनका चरित्र और कार्य आज इतने वर्षोके बाद भी हमें उचित जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है... उनके शौर्य और किर्ति से आज भी हमें उनके वंशज होने का गर्व धारण करते हैं |

आज हम जालौरदुर्गके भीतर एक हाथ में नंगी तलवार और एक हाथ में अपने ही पतिका कटा शीश लेकर महाराज कान्हड़देव की ओर कदम बढाती राष्ट्रभक्त वीरांगना हीरादे के रूप में वास्तविक राष्ट्रभक्ति का प्रत्यक्षरूप से दर्शन करेंगे...!!


सन १२९६,
जलालुद्दीनको मारकर अलाउद्दीन खिलजी दिल्लीके तख्त पर बैठा, पूरे हिंदुस्तान पर आधिपत्य जमानेकी लालसामें अलाउद्दीन एक एक कर अनेक हिंदू राजाओं पर विजय प्राप्त किया...!
करीब सन १३१० में उसकी विजययात्रा राजपूताना के रणथंभौरके राजा हमीरदेव चौहान, सिवाना के महाराज सुतलदेव जैसे कई राजाओं को हराकर अलाउद्दीन की सेना जालौरदुर्ग के द्वार आ खड़ी हुई...!!

लगातार सात दिनों तक अलाउद्दीन की सेना ने जालौर दुर्ग को तोड़ने का असफल प्रयास किया लेकिन शत्रुसेनाके लगातार हो रहे हमलोसे जालोरके महाराज कान्हड़देव, उनके भाई मलादेव और उनके पुत्र वीरमदेव कहीं ना कहीं व्यथित हो उठे...!! लेकिन अभी हिम्मत हारे नहीं थे |

कान्हड़े प्रबंध अनुसार,
युध्दके आठवें दिन महाराज कान्हड़देवने अपनी सेनाको दो दलोंमें विभाजित कर दीयां, पहला दल भाई मलादेवके नेतृत्वमें वेदीकी तरफ और दूसरा दल पुत्र वीरमदेवके नेतृत्वमें भद्रजून की तरफ......दोनों तरफ से आक्रमण कर अद्भुत वीरता और शौर्य का प्रदर्शन करते राजपूत सेना ने खिलजीओ को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया...!!

इस तरह जालौरमें हार का मुंह देख कर खिलजीसेना वापस दिल्लीकी ओर लौट रही थी, लेकिन कुछ दिनों पश्चात खबर आई की अलाउद्दीन की सेना वापिस जालौर तरफ लौट रही है.....!! महाराज कान्हड़देवको आश्चर्य हुआ की हारी हुई सेना वापस क्यों आ रही है...!?

बात है सन १३११ वैशाख सुदी पंचमी की....
जब जालौरका एक सैनिक विका दहीया जालौरदुर्गके सारे गुप्तभेद (राज़) अलाउद्दीनसेना को बताने के पारितोषिक रूप में मिली धनराशिकी गठरी लेकर खुशी-खुशी घर लौट रहा था | जालौर का राजा बनने वं धन वैभव की लालसा में अपने ही पालक राजा कान्हड़देवके साथ गद्दारी कर घर लोटा और धनकी गठरी कुटिल मुस्कान के साथ अपनी पत्नी हीरादे के हाथों में सौंपने हेतु बढाई...!
अपने पतिके हाथोंमें इतना धन देख खिलज़ीसेनाका वापिस जालौर आने का भेज हिरादे भली-भांति समझ गए, आखिर वह भी तो एक क्षत्रिय नारी थी...!!

उसने तुरंत ही पूछा : क्या यह धन आपको अलाउद्दीन सेनाको जालौर किलेका कोई गुप्तभेज देनेके बदले में प्राप्त हुआ है...??

बीकाने कुटिल मुस्कान के साथ स्वीकृतिमय में उत्तर दिया...

•इतना जानते ही हीरादे क्रोधसे भयंकर महाकाली कैसे अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठीं |

अरे गद्दार आज विपदाके समय अपने ही राष्ट्रके साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई..?
तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद भी क्षत्रिय द्वारा निभाएं जाने वाले स्वामीभक्ति धर्मको भूल गए...?

हीरादे जैसे राष्ट्रभक्त क्षत्रिय नारी ऐसे गद्दार को अपना पति मानने में भी शर्म महसूस होने लगी | उन्ही विचारों के साथ किल्लेका गुप्तभेद जानी हुई शत्रुसेना के साथ होने वाला युद्ध.... जिसमें जालोरके क्षत्रिय योद्धा मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने रक्त का आखिरी कत्तरा बहने तक दुश्मनों को मारते हुए शहीद हो रहे थे..... और दूसरी तरफ दुर्ग के भीतर अनेक क्षत्राणीयाँ द्वारा अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जालौरमें प्रजवलित ज्वाला में समर्पित होने के......छोटे-छोटे बच्चों का विलाप.... जैसे कई भयावह दृश्य हीरादे की आंखों के सामने खड़े हो गए....!!!
ऐसे विचारों से हीरादे का ह्रदय द्रवित हो उठा...एक तरफ मातृभूमि की रक्षा हेतु बलिदान देने वाले जालौर के वीर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते हुए नजर आ रहे थे और दूसरी तरफ उसका देशद्रोही पति....!!!

राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान से भरी क्षत्राणी हीरादेकी नजर में अपने पति द्वारा किए गए ऐसे जघन्य अपराध का दंड उसी वक्त देना आवश्यक था | हीरादे की एक तरफ क्षत्राणीधर्म था और दूसरी तरफ अपना सुहाग.....!!!
हीरादे ने अपने क्षत्राणी होने के कर्तव्य का पालन करना उचित समझा , क्रोध से कांप रही हीरादे ने पास ही रखी तलवार उठा कर एक ही वार में अपने पति का सिर धड़ से अलग कर दिया....!!!

एक हाथ में नंगी तलवार और दूसरे हाथ में अपने ही पतिका कटा सिर लिए महाराज कान्हड़देव को उनके एक सैनिक द्वारा की गई गद्दारी और उसे उचित सजा दीए जाए जाने की जानकारी दी...!

महाराज कान्हड़देव और पुरा जालौरगढ इस राष्ट्रभक्त वीरांगना के सामने नतमस्तक हो चुके...!!
महाराज कान्हड़देव हीरादे जैसे राष्ट्रभक्त क्षत्राणीयाँ पर मन ही मन गर्व करते हुए अलाउद्दीन सेना से निर्णायक युद्ध करने चल पड़े..!
पर अफसोस.... हीरादे से के इतने बड़े बलिदान और राष्ट्रभक्ति को इतिहास में जगह नहीं मिल पाई हीरादे जैसे राष्ट्रभक्त क्षत्राणी को नमन कर उनके जैसे राष्ट्रभक्ति को ह्रदय में धारण करने का उचित प्रयास करें...!!

-शिवराजसिंह ‘स्नेह’