गीता सार
गीता में लीखा है, निराश मत होना,
कमजोर तू नहीं, तेरा वक्त है ॥
जो हुआ वह अच्छा हुआ ।
जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है ।
जो होगा, वह भी अच्छा होगा ।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रो रहे हो ?
तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया ?
तुमने क्या पैदा किया, जो नष्ट हो गया ?
तुमने जो लिया , यही से लिया ;
जो दिया, यही पर दिया ;
जो आज तुम्हारा है,
कल किसी और का था,
कल किसी और का होगा.
परिवर्तन ही संसार का नियम है ।।
श्री कृष्ण बताते है,
« गीता मेरा हॄदय है ।
गीता मेरा उत्तम सार है ।
गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है ।
गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है ।
गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है ।
गीता मेरा परम पद है ।
गीता मेरा परम रहस्य है ।
गीता मेरा परम गुरू है ॥«
आत्मा ना पैदा होती है, ना मरती है ॥
भूत का पश्चाताप ना करो ।
भविष्य की चिता ना करो ।
वर्तमान में जीओ ।
खाली हाथ आए हो, खाली हाथ जाना है ॥
न यह शरीर तुम्हारा है और न तुम इस शरीर के हो। यह शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इन्ही में विलीन हो जाएगा । जो शेष रहेगा, वो आत्मा है, और वो अमर है ॥
तुम इश्वर परायण हो, अपने आपको भगवान के
अर्पित कर दो। वह, इश्वर ही सबसे उत्तम सहारा
है। जो उसमें आश्रय पाता है, वह भय, चिंता और
शोक से सर्वदा मुक्त हो जाता है ॥
जो कुछ भी तुम करते हो, उसे भगवान के अर्पण
करो, ऎसा कर के तुम सदा जीवन-मरण से परे
अपार आनंद का अनुभव करोगे ॥
मनुष्य अपने विश्र्वास से निर्मित होता है, जैसा
वह विश्वास करता है, वैसा वह बन जाता है ॥
सफलता नही मिलने पर भी हिम्म्त ना हारना
बुधिमानी है ॥
जिसने डर को जीत लिया, वह सबको जीत सकता
है ॥
सदा भी अपने कर्तव्य का पालन करो ।।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुधि व्यग्र होती
है, जब बुधि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट हो जाता है, तब व्यक्ति का पतन हो जाता है ॥
अच्छे काम करते रहिये.. चाहे लोग तारीफ करें या
ना करें । आधी से ज्यादा दुनिया सोती रह्ती है..
«सूरज फिर भी उगता है.. और रोशनी बाटता है ।।
जो होना है, वो हो के रहेगा, वर्तमान का आनंद लो॥
मेरा-तेरा, छोटा-बडा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो ॥
जीवन में उचा उठ ने के लिए मनुष्य तो जितना
विनम्रता से झुकता है, उतना ही उपर उठता है ॥
अगर मन सच्चा और दिल अच्छा है तो हररोज
सुख ही सुख है, सुख – दुःख सब मन की लीला है॥
वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट ज्न्म और
गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्याग ने
के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को
प्राप्त होता है ॥
जो लोग तुम्हारी बुराई करते है वो करेंगे, चाहे
तुम अच्छा काम करो या बुरा। इसलिए शांत
रहकर अपना कर्म करते रहो। निंदा से मत घबराओ। निंदा उसी की होती है, जो जिंदा है।
मरने के बाद तो सिर्फ तारीफ होती है ॥
अपने अहंकार को छोडोः व्यक्तिगत जीवन में हमेशा सहज व सरल बने रहो ॥
जिसके पास उम्मीद है, वो लाख बार हार के भी
« नही हार सकता« ॥
न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में बुधि
नही होती और उस मनुष्य के अंतःकरण में भावना
भी नही होती ॥
गीता उपदेशः
कला से प्रेम करो ।
निर्बल का साथ दो ।
अन्याय का प्रतिकार करो ।
मातॄशक्ति के प्रति आदर भाव रखें ।
अहंकार को छोडो ।
जीवन में उदारता रखें ।
गीता में चार योग के बारेमें विस्तार से बताया है ।।
कर्म योग
भक्ति योग
राजा योग
जन योग
गीता में धीरज, शांति, संतोष, मोक्ष और सिध्धि को प्राप्त करने के बारे में बताया गया है ॥
अहंकार, लोभ और द्वेष ही मनुष्य के शत्रु है, त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश दिया है, कर्म को
सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है ।।
॥ जय श्री कॄष्ण ॥