काइरोप्रेक्टिक-हड्डी रोगों का उपचार

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नीलम कुलश्रेष्ठ  जब विश्व सभ्यता बर्बर थी, रोग तब भी मानव शरीर को घेरते थे। लोग यही समझते थे कि भगवान ने रोगी को उसके पापों की सजा दी है। इसलिये उसे रोग हुआ है। लोग मंदिरों में चिकित्सा के लिये जाते थे जहाँ के पुजारी रोगी को कुछ खाने को नहीं देते। कोई जड़ी बूटी पिलाकर सोने पर मजबूर कर देते थे। रोगी को स्वप्न में जो दिखाई देता था उसी के अनुसार चिकित्सा करते थे । ईसा पूर्व 460 से 356 में हिपोकेटरो (हिपोक्रेटिस) नामक व्यक्ति ने ये अन्ध श्रद्धा तोड़ी कि रोगी को रोग होने का कारण