काव्य समीक्षा - पथ की पहचान

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पथ की पहचान पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर लेपुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगेकौन सहसा