Prakash Manu

Prakash Manu માતૃભારતી ચકાસાયેલ

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Haryana

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તમારા વિષે

साहित्य में अपनी अलग राह बनाने वाले धुनी और फक्कड़ मिजाज के प्रकाश मनु ने आगरा कॉलेज, आगरा से भौतिक विज्ञान में एम.एस-सी. (1973) किया। फिर साहित्यिक रुझान के कारण जीवन का ताना-बाना ही बदल गया। 1975 में आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए.। 1980 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यायल में यू.जी.सी. के फैलोशिप के तहत ‘छायावाद एवं परवर्ती कविता में सौंदर्यानुभूति’ विषय पर शोध। कुछ वर्ष प्राध्यापक रहे। लगभग ढाई दशकों तक बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका ‘नंदन’ के संपादन से जुड़े रहे। अब स्वतंत्र लेखन। बाल साहित्य से जुड़ी कुछ बड़ी योजनाओं पर काम कर रहे हैं। लीक से हटकर लिखे गए ‘यह जो दिल्ली है’, ‘कथा सर्कस’ और ‘पापा के जाने के बाद’ उपन्यास की बहुत चर्चा हुई। इसके अलावा ‘छूटता हुआ घर’, ‘एक और प्रार्थना’, ‘कविता और कविता के बीच’ (कविता-संग्रह) तथा ‘अंकल को विश नहीं करोगे’, ‘सुकरात मेरे शहर में’, ‘अरुंधती उदास है’, ‘जिंदगीनामा एक जीनियस का’, ‘मिसेज मजूमदार’, ‘मिनी बस’, ‘मेरी इकतीस कहानियाँ’, ‘इक्कीस श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘प्रकाश मनु की लोकप्रिय कहानियाँ’ समेत बारह कहानी-संग्रह। हिंदी के दिग्गज साहित्यकारों के लंबे, अनौपचारिक इंटरव्यू