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खौफ की रातें - उपन्यास
Rahul Haldhar
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
मेरा नाम मुकेश है , नगर गांव का लड़का हूँ मैं।
आधीरात को जंगल में जाकर लौट सकता हूँ ,
अमावस्या को गांव के शमशान से शव जलाने वाले
लकड़ी न जाने कितनी बार लाया हूँ । परन्तु मेरा
डर है केवल दिल्ली शहर से , जहां दो कदम बढ़ने पर
लोगों से धक्का लगता है । इलेक्ट्रिक लाइट के कारण
दिन है या रात समझ ही नही आता । वहीं पर एक
रात जिस मुसीबत में पड़ा था क्या बताऊँ ।।
1) दिल्ली की गलियांमेरा नाम मुकेश है , नगर गांव का लड़का हूँ मैं।आधीरात को जंगल में जाकर लौट सकता हूँ ,अमावस्या को गांव के शमशान से शव जलाने वालेलकड़ी न जाने कितनी बार लाया हूँ । परन्तु मेराडर ...और पढ़ेकेवल दिल्ली शहर से , जहां दो कदम बढ़ने परलोगों से धक्का लगता है । इलेक्ट्रिक लाइट के कारणदिन है या रात समझ ही नही आता । वहीं पर एकरात जिस मुसीबत में पड़ा था क्या बताऊँ ।।" नही दिल्ली शहर में शाम के बाद निकलना इससे डरनेकी बात नही । "मेरी यह बात सुन सब हँस पड़े ।" तो
2) पुरखों का घरआपने कानपुर के शुक्लागंज का नाम सुना ही होगा ।मैं तिलक ठाकुर , शुक्लागंज गंगा ब्रिज के पास गंगा के किनारे हमारा एक पुस्तैनी पुरखों का बड़ा सा घर है लेकिन अब वहां कोई नही रहता ...और पढ़ेघर जर्जर है , ईंटे ,टाइल्स व खिड़कियां ऐसे ही झूले हुए रहतें हैं ।एकबार देखकर ऐसा सबको लगता है कि वह घरजरूर भूतिया ही होगा , पर आज तक ऐसी कोईविशेष घटना वहां नही घटी जिससे कि इस पुराने ,टूटे फूटे घर को हॉन्टेड प्लेस का दर्जा मिले ।मैंने सुना है वह घर मेरे पिता के दादा के दादा
3 ) चुड़ैलमेरे दोस्त का जन्मदिन था तो मैं सीधे कॉलेज से उसकेघर गया ,, मैंने घर से कुछ नए कपड़े जन्मदिन पर पहननेके लिए ले गए थे । पार्टी शाम को मनानी थी और क्योंकि यह जबरदस्तठंडी का ...और पढ़ेथा शाम होते ही कोहरा ऐसे पड़तामानों आपके सामने खड़ा व्यक्ति भी न दिखे ।इसीलिए मैंने उससे कहा कि शाम होते ही मैं निकलजाऊंगा घर के लिए मेरा घर भी वहां से 18 किलोमीटरदूर था । पर वह न माना और मैं भी सोचा चलो किसीतरह से तो घर पहुंच ही जाऊंगा ।रात के 9:30 बज चुके थे क्योंकि इस
4) भूतशिव जलपान व मिष्ठान गृह हम दोस्तों के बैठकरदुनिया में व आसपास हो रहे कई प्रकार के बातकरने का एक बेहतरीन स्थान है । जिसका यहदुकान है उसका नाम है गोलू वह अपने साथ क्रिकेटखेलने अक्सर कई जगह ...और पढ़ेहै तो ये अपना ही अड्डाहुआ वह कुछ न बोल पाता । सोच रहा हूँ हॉरर टाइमकहानी संग्रह में एक और भूतिया कहानी लिखूं पर कुछसमझ नही पा रहा ।मैं , सत्यम और मुकेश बैठे हुएं हैं । मैं बोला अरे भाइयोंकभी तुमने भूत देखा है या कोई कहानी सुनी है भूत केबारे में । सत्यम बोल पड़ा – "
5) भूतिया स्टेशनसुबह टेलीफोन की घंटी बज उठी , उस वक्त मैं आंख बंद कर आधे नींद में था। शायद सुबह के 10 बजने वाले थे । रात को कुछ ज्यादा ही समय तक एक लेखन पर जुटा हुआ ...और पढ़ेइसलिए अब तक सो रहा था । फोन उठाया उधर पत्रिका सम्पादक दिवाकर चटर्जी जी थे बोले , " प्रशांत जल्दी से ऑफिस आ जाओ एक जरूरी काम करना है । " " ओके सर " यह कहकर फोन रख दिया । अब क्या हुआ कौन सा बादल फट गया । मैंने आंख मलते हुए बड़बड़ाया । वैसे भी पत्रिका