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पुस्तकें - उपन्यास
Pranava Bharti
द्वारा
हिंदी कुछ भी
ज़िंदगी की उलझनों के दिन-रात, शामें बँट जाती हैं शब्दों में, चुप्पी साधी नहीं जा सकती यदि कोई संवेदनशील हो --कसमसाते हुए दिनों की आहट उसे परेशान करती ही तो रहती है जब तक भावों का पुलिंदा खुलकर उसमें से कतरे-कतरे लेखनी की नोक पर न आ बैठें | वे भाव बाध्य करते हैं कुछ न कुछ कहने के लिए, चुप बिलकुल ही नहीं रहने देते | पीड़ाओं को समेटे हृदय मानो एक कोठरी में साँसें लेने की मज़बूरी से कराहता रहता है |
ये कराहटें शब्दों के माध्यम से जब कागज़ पर उतर जाती हैं तब कहीं जाकर घुटी साँस खुलकर जीने का साहस बटोर पाती है| कुछ चरित्र तो इतना झँझोड़ते रहते हैं कि जब तक उन्हें कागज़ या कैनवास पर न उतारा जाए तब तक टिके ही नहीं रहते |
कहानी संग्रह लेखिका - वीणा विज ---------- ज़िंदगी की उलझनों के दिन-रात, शामें बँट जाती हैं शब्दों में, चुप्पी साधी नहीं जा सकती यदि कोई संवेदनशील हो --कसमसाते हुए दिनों की आहट उसे परेशान करती ही तो रहती है ...और पढ़ेतक भावों का पुलिंदा खुलकर उसमें से कतरे-कतरे लेखनी की नोक पर न आ बैठें वे भाव बाध्य करते हैं कुछ न कुछ कहने के लिए, चुप बिलकुल ही नहीं रहने देते पीड़ाओं को समेटे हृदय मानो एक कोठरी में साँसें लेने की मज़बूरी से कराहता रहता है ये कराहटें शब्दों के माध्यम से जब कागज़ पर
प्रतापनारायण सिंह की रचना पढ़ना मुझे हर बार एक अनौपचारिक छुअन से ओत -प्रोत होना लगा है पल-पल की छुअन से मर्मर करते शब्द सरलता, सहजता की कोमल अनुभूति से आप्लावित करते हैं जीवन से ...और पढ़ेकविता मन के आँगन में कभी वेणु की धुन बनकर सुनाई देती है तो कभी शाश्वत संसार के सत्य में डूबी हुई स्याही जीवन के ओर-छोर को पकड़ गहन लोरी गुनगुनाती महसूस होती है कवि प्रतापनारायण सिंह का बेशक यह प्रथम काव्य-संग्रह है किन्तु प्रकाशन होना और कलम की निरंतरता का गांभीर्य अहसास मन के कपाट खोल कह जाता है कि
कथा –बिंब (जुलाई-दिसंबर 2021) त्रैमासिक पत्रिका में डॉ. प्रणव भारती का साक्षात्कार ---------------------------- मधु प्रसाद -- नमस्कार दी ! आपसे पहली भेंट ही मन पर गहरी छाप छोड़ गई थी आपकी सरलता और तरलता ने मेरा आपसे ...और पढ़ेकर दिया वर्षों से आपके साथ कई मंच सांझा करने का भी सुयोग मिलता रहा आपने बहुत लंबा सफ़र तय किया है ज़ाहिर है, सफ़र आसान तो नहीं रहा होगा न जीवन जीने का, न ही साहित्य का ! मैं चाहूंगी पहले आपके साथ चलूँ --गुड़िया खेलती, घरौंदे बनाती, झूले झूलती प्रणव का बचपन, माता-पिता, परिवार में
प्रगति गुप्ता 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' प्रगति गुप्ता का कहानी संग्रह अपने शीर्षक से ही एक उत्सुकता को जन्म देता है | ग्यारह विभिन्न शीर्षकों में बँटी ये कहानियाँ हौले से बहुत से प्रश्न कानों में उंडेल जाती हैं | एक ...और पढ़ेअर्से से यह पुस्तक मेरे पास थी लेकिन मेरी कुछ अवशताओं के कारण मुझे इन सबको पढ़ने में, इनके पात्रों के साथ संवाद करने में देरी होती गई और इसीलिए इन पर थोड़ा-सा भी कुछ लिखने में बहुत देरी हो गई | प्रगति की कुछ कहानियाँ मैंने पहले भी पढ़ी थीं, उन पर उनसे चर्चा भी हुई थी लेकिन पुस्तक
धनंजय -- संवेदनात्मक अभिव्यक्ति 'धनंजय' जैसा नाम से ही स्पष्ट है, लेखक प्रताप नारायण सिंह का एक ऐसा उपन्यास है जिसके सारे चरित्र पौराणिक हैं | इस उपन्यास के सारे चरित्र व घटनाएँ वेदव्यास के ग्रंथ से उदृत किए ...और पढ़ेहैं किन्तु उपन्यासकार ने इस कथा को ऐसे इंद्रधनुषी धागों से बुनकर एक अनुपम रंग-बिरंगा दुशाला तैयार किया है जिसमें आज का मौसम मुखर होता है, शीत व ग्रीष्म की सभी ऋतुओं के भीनेपन की कोमल छुअन महसूस होती है | लेखक ने धनंजय की चौहदवीं वर्षगांठ से कथा का प्रारंभ किया है और क्योंकि कथा की धुरी धनंजय हैं,