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एक दुनिया अजनबी - उपन्यास
Pranava Bharti
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
ऊपर आसमान के कुछ ऐसे छितरे टुकड़े और नीचे कहीं, सपाट, कहीं गड्ढे और कहीं टीलों वाली ज़मीन | गुमसुम होते गलियारे और उनमें खो जाने को आकुल-व्याकुल मन ! पता ही तो नहीं चलता किधर जाएँ ? कभी रहा है क्या किसी का मन स्थिर ! न ही ज्ञानी-ध्यानी का न ही आम आदमी का --और संतों की बात --कितने हैं ? गिन लें ऊँगली पर !
ज्ञान और अज्ञान भी बड़ी गोल-मोल चीज़ हैं |
कभी आसमान पुकारकर उसे ऊँची उड़ान की घोषणा करने के लिए निमंत्रित करता है तो कभी ज़मीन के गढ्ढे उसे अपने भीतर समेट लेते हैं |
"क्या है ये जीवन ? कुछ समझ ही नहीं आता, नरो व कुंजरो वा ? | " शुजा ऐसे ही गोल-गोल घूमते हुए जीवन के बाँकडे पर जाकर खड़ी हो जाती |
एक दुनिया अजनबी 1 ====ॐ ऊपर आसमान के कुछ ऐसे छितरे टुकड़े और नीचे कहीं, सपाट, कहीं गड्ढे और कहीं टीलों वाली ज़मीन | गुमसुम होते गलियारे और उनमें खो जाने को आकुल-व्याकुल मन ! पता ही तो नहीं ...और पढ़ेकिधर जाएँ ? कभी रहा है क्या किसी का मन स्थिर ! न ही ज्ञानी-ध्यानी का न ही आम आदमी का --और संतों की बात --कितने हैं ? गिन लें ऊँगली पर ! ज्ञान और अज्ञान भी बड़ी गोल-मोल चीज़ हैं | कभी आसमान पुकारकर उसे ऊँची उड़ान की घोषणा करने के लिए निमंत्रित करता है तो कभी ज़मीन के गढ्ढे उसे अपने भीतर समेट लेते
एक दुनिया अजनबी 2- छुट्टियाँ कैसे कटें? इस चक्कर में लाड़ली आर्वी के कहने पर पापा यानि शर्मा जी ने तभी वी.सी.आर का नया मॉडल भी खरीद दिया | दिन में तो कूलर में पड़े रहकर सब बच्चे फ़िल्म ...और पढ़ेकोई देखते-देखते ज़मीन पर पसर कर ख़र्राटे भी लेने लगता , फिर जो उसकी आई बनती "अरे ---कहाँ सोया ---" पेट में गुदगुदाते हुए हाथों को रोकने की व्यर्थ सी कोशिश में वह धरती पर लोटमलोट होता रहता पर गुदगुदाने वाले हाथ कहाँ रुकते ! रात में तो सामने के ख़ाली पड़े बड़े से प्लॉट की रेत में उछल-कूद करनी लाज़िमी थी ही |सोसाइटी नई बन रही थी
एक दुनिया अजनबी 3— जिस नई सोसाइटी में इन बच्चों के माता-पिता घर बनवा रहे थे उसका चौकीदार या गार्ड कह लीजिए सुबह दूध की थैलियाँ देने घरों में आता, कुछ परिवारों ने उससे दूध बाँध रखा था, उस ...और पढ़ेका नाम वसराम रबारी था |रबारी लोगों का अपना रहन-सहन, परंपराएँ, अपना बात करने का सलीका ! सब कुछ अलग सा ही ! इस शैतान टोली ने एक बार वसराम भाई यानि उस सोते हुए चौकीदार की चारपाई उठाकर चुपके से सोसाइटी के बिलकुल पीछे की लाइन में ले जाकर रख दी, वह एक डंडा अपनी चारपाई के सिरहाने रखता था जिससे यदि कोई कुत्ता आदि आ जाए
एक दुनिया अजनबी 4-- ये बच्चे बड़े ही शैतान ! रात में आधी रात तक जागने पर भी सुबह की सैर के लिए मुँह-अँधेरे उठकर थोड़ी दूर बने बगीचे में भाग-दौड़ करके आ जाते और जब कोई ऐसी शैतानी ...और पढ़ेतब तो ज़रूर ही उसका परिणाम देखने सारे एकत्रित हो जाते | कल की रात का परिणाम तो सुबह ही देखना होता था न सो उस दिन चारों की टोली सैर से भी जल्दी भाग आई और उसी अधबनी दीवार पर चढ़कर साइकिल पर एक चप्पल पहने, बोझिल से पैडल मारकर वसराम को आते देखकर सब ऐसे चेहरा बनाकर बैठ गए मानो बड़े भोले, अनजान हों |
एक दुनिया अजनबी 5-- वह उसके आगे खड़ा था, आँखों में आँसू भरे, अभी अभी उसके पैर छूए थे उसने| काफ़ी बुज़ुर्ग थीं वो , नीम के चौंतरे पर एक मूढ़ानुमा कुर्सी डाले बैठी थीं |उन्हें घेरकर छोटी-बड़ी उम्र ...और पढ़ेउन जैसे कई और भी नीम के पेड़ में छाँह वाले चबूतरे पर बैठे थे | घने नीम के वृक्ष के नीचे काफ़ी बड़ा चबूतरा बनाया गया था जिस पर लगभग पंद्रह-सत्रह लोग समा सकते थे | तालियों की मज़बूत आवाज़ का बिना सुर-ताल का भजन दूर तलक पसरा हुआ था | "मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई ---न कोई, न कोई " प्रखर ने दूर से कुर्सी पर बैठी आकृति को ध्यान