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चन्द्र-प्रभा - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
फूलझर वन जहाँ के फूल कभी भी कुम्हालाते नहीं थे,फूलझर वन सदैव किसी ना किसी पुष्पों की सुन्दरता से सुसज्जित रहता था,वहां की धरती पर सदैव पुष्प झड़ कर गिरते रहते हैं, इसलिए उसका नाम फूलझर वन था,वहां की सांझ और सवेरे की सुन्दरता मन मोह लेती थीं, पंक्षियों का कलरव और श्वेत स्वच्छ जल के झरनें वहाँ की सुन्दरता बढ़ाने मे पूर्ण योगदान देते,विशाल वृक्ष सदैव फलों से भरे रहते,वहां की लताएँ दूसरे वृक्षों पर लिपट कर अपना प्रेम प्रकट करतीं,वन मे कुलाँचे भरते मृग स्वच्छंदता से विचरण करते।।
फूलझर वन जहाँ के फूल कभी भी कुम्हालाते नहीं थे,फूलझर वन सदैव किसी ना किसी पुष्पों की सुन्दरता से सुसज्जित रहता था,वहां की धरती पर सदैव पुष्प झड़ कर गिरते रहते हैं, इसलिए उसका नाम फूलझर वन था,वहां की ...और पढ़ेऔर सवेरे की सुन्दरता मन मोह लेती थीं, पंक्षियों का कलरव और श्वेत स्वच्छ जल के झरनें वहाँ की सुन्दरता बढ़ाने मे पूर्ण योगदान देते,विशाल वृक्ष सदैव फलों से भरे रहते,वहां की लताएँ दूसरे वृक्षों पर लिपट कर अपना प्रेम प्रकट करतीं,वन मे कुलाँचे भरते मृग स्वच्छंदता से विचरण करते।। परन्तु एक दिन राजकुमार भालचन्द्र वहाँ आखेट करते हुए
क्या हुआ? सूर्यप्रभा!आप मुझे देखकर सर्वप्रथम प्रसन्न हुई,इसके उपरांत अप्रसन्न हो उठीं, ऐसा क्या सोचा आप ने मेरे विषय में,भालचन्द्र ने सूर्यप्रभा से पूछा।। कुछ नहीं राजकुमार,बस कुछ सोचकर मन में कुछ विचार आए, सूर्यप्रभा बोली।। ...और पढ़े ऐसे भी क्या विचार आए,तनिक मुझे भी बताइए सूर्यप्रभा!भालचन्द्र ,सूर्यप्रभा से बोला।। यही कि आप एक राजकुमार हैं और मैं एक मछुआरे की पुत्री हूं, मेरा आपसे वार्तालाप करना उचित नहीं है, सूर्यप्रभा बोली।। परन्तु क्यो? सूर्यप्रभा! ऐसा क्यों सोच रही हैं आप, ऐसे विचार तो मेरे मन में कभी भी नहीं आए,भालचन्द्र बोला।। मुझसे आपकी इतनी निकटता, उचित नहीं है,आप जो
सुभागी ने राजकुमार भालचन्द्र की बात सुनकर कहा कि ये बहुत लम्बी कहानी हैं राजकुमार! वो भयावह अमावस्या की रात्रि हम हम कैसे भूल सकते हैं, जिस रात्रि हम सूर्यप्रभा को उस दुष्ट जादूगरनी के हाथों से बचाकर लाए।। ...और पढ़े तनिक विस्तार से पूरी घटना बताएं ,मैं ये ज्ञात करना चाहता हूँ कि क्या हुआ था,भालचन्द्र ने सुभागी से कहा।। तो सुनिए राजकुमार मैं आपको सारी कहानी विस्तार से बताती हूँ, सुभागी ने भालचन्द्र से कहा और सुभागी ने कहानी कहना प्रारम्भ किया।। बहुत समय पहले की बात हैं___ घने वनो से सुशोभित,देवनागरी नदी के तट पर,पहाड़ियों से
पुरोहित विभूतिनाथ जी ने अपने पुत्र गौरीशंकर को मंदिर मे पूजा-अर्चना हेतु मंदिर मे पुरोहित के पद पर नियुक्त कर दिया एवं स्वयं राजा अपारशक्ति के महल में राजा के निकट रहने लगें।। ...और पढ़े प्रतिदिन की भांति रानी जलकुंभी उस दिन भी स्नान करके अपनी दासियों के साथ मन्दिर पहुंची, नए पुरोहित को देखकर थोड़ा ठिठकीं और अपनी दासियों से पूछा ये व्यक्ति कौन हैं, तनिक इनसे पूछो।। तभी सुभागी ने आगे जाकर उस नवयुवक से पूछा___ महाशय!आप कौन हैं एवं इस मन्दिर में क्या कर रहे हैं? जी!मुझे इस मन्दिर मे नए पुरोहित के पद पर नियुक्त किया
गौरीशंकर के मस्तिष्क में अब केवल एक ही विचार चल रहा था कि उसे राजा अपारशक्ति को किसी भी प्रकार अपने मार्ग से हटाना हैं और इसके लिए उसे कुछ भी करना स्वीकार था,उसके विचार इतने घृणित और ...और पढ़ेहो चुके थे कि वो कुछ भी सकारात्मक सोचना ही नहीं चाहता था।। गौरीशंकर ने अपनी योजना को सफल बनाने के लिए महल में जाना प्रारम्भ कर दिया,उसने महल मे सबके साथ अच्छा व्यवहार बना लिया एवं राजा अपारशक्ति से भी कुछ दिनों मे ही निकटता बढ़ा ली,अब अपारशक्ति और महल के और भी सदस्यों का गौरीशंकर विश्वासपात्र बन गया,राजा