Vikram Singh ની વાર્તાઓ

आवारा अदाकार - 6 - अंतिम भाग

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (6) उस दिन मेरी उससे आखिरी मुलाकात हुई। फिर वह मुम्बई चला गया। जितना उसने ...

आवारा अदाकार - 5

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (5) उस पूरे दिन गुरूवंश मुँह लटकाये घूमता रहा। न किसी से बात कर रहा ...

आवारा अदाकार - 4

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (4) ’’जी’’ ’’कितना दे रहे हैं?’’ ’’जी बस चार हजार।’’ ’’आप को कितना मिलता है?’ ...

आवारा अदाकार - 3

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (3) उसने कहा, ’’अब तुम दोनों निकल जाओ।’’ वह चुप रहा। बबनी ने ही कहा,’’बस ...

आवारा अदाकार - 2

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (2) सही मायने में वह सुबह में दिखती ही नहीं थी। क्योंकि वह सुबह देर ...

आवारा अदाकार - 1

by Vikram Singh
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आवारा अदाकार विक्रम सिंह (1) ’’मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं। हौसला ...

यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग

by Vikram Singh
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यारबाज़ विक्रम सिंह (16) घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा ...

यारबाज़ - 15

by Vikram Singh
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यारबाज़ विक्रम सिंह (15) मगर इन सब से हट गए मेरा एक मित्र विनय भी था जो कई सालों ...

यारबाज़ - 14

by Vikram Singh
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यारबाज़ विक्रम सिंह (14) मुख्यमंत्री तक पहुंच गई तुरंत ही मुख्यमंत्री ने श्रम अधिकारी से बात की ,आप मैनेजमेंट ...

यारबाज़ - 13

by Vikram Singh
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यारबाज़ विक्रम सिंह (13) अब तो क्या गांव पूरे इलाकों में बस पोस्टर और बैनर ही बैनर दिख रहे ...