Roop Singh Chandel ની વાર્તાઓ

सुनो पुनिया - 4 - अंतिम भाग

by Roopsinh Chandel
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सुनो पुनिया (4) बलमा के ढोल का स्वर भी तेज से तेजतर होता जा रहा था. बलमा झूम रहा ...

सुनो पुनिया - 3

by Roopsinh Chandel
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सुनो पुनिया (3) पुनिया अब घर से अकेली कम ही निकलती थी. जब कभी जाती या तो अपनी माई ...

सुनो पुनिया - 2

by Roopsinh Chandel
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सुनो पुनिया (2) घिनुआखेड़ा अहीरों का ही गांव है---एक सौ तीस घरों का छोटा-सा गांव. सभी काश्तकार. परिश्रमी और ...

सुनो पुनिया - 1

by Roopsinh Chandel
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सुनो पुनिया (1) घाम की चादर आंगन के पूर्वी कोने में सिकुड़ गई थी. पुनिया ने मुंडेर की ओर ...

वह चेहरा - 3 - अंतिम भाग

by Roopsinh Chandel
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वह चेहरा (3) उनके पिता पारंपरिक सोच के थे और अपनी बढ़ती उम्र से चिन्तित. एक दिन वह दिल्ली ...

वह चेहरा - 2

by Roopsinh Chandel
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वह चेहरा (2) उन दिनों वह दिल्ली में विदेश मंत्रालय में अनुवादक थे. अपने को पी-एच.डी. के लिए पंजीकृत ...

वह चेहरा - 1

by Roopsinh Chandel
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वह चेहरा (1) मध्य दिसम्बर का एक दिन. सुबह की खिली-खिली धूप और लॉन में पड़ी बेंचें. बेंचों पर ...

भीड़ में - 7 - अंतिम भाग

by Roopsinh Chandel
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भीड़ में (7) ’पोते का तिलक है---जाना ही पड़ेगा. नए कपड़े भी बनवाना होगा. पता नहीं बैंक में कितने ...

भीड़ में - 6

by Roopsinh Chandel
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भीड़ में (6) “बाऊ जी बुरा न मानो तो एक गल कवां---“मंजीत चेहरे पर मुस्कान ला बोला, उन्हें अच्छा ...

भीड़ में - 5

by Roopsinh Chandel
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भीड़ में (5) चलते समय लल्लू बोला था, “बाबू जी अम्मा की तबीयत तो अधिक ही खराब दिख रही ...