दिलरस प्रियंवद (4) ‘क्या उससे सूजन ठीक हो जाती है?’ ‘वह तो बिलकुल हो जाती है।’ ‘लकड़ी की टाल ...
दिलरस प्रियंवद (3) ‘नहीं... मुझे बहुत चाहिए। जितनी इधर हैं वे सब। साल भर की दवा बनानी है। पतझर ...
दिलरस प्रियंवद (2) लड़के ने छह बार लड़की को देखा। पहली बार में उसने देखा कि लड़की ने रात ...
दिलरस प्रियंवद (1) पतझर आ गया था। उस पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं बचा था। बाजरे की कलगी ...
दास्तानगो प्रियंवद ६ एटिक में अब अंधेरा था। बुढ़िया ने चरखे पर काता हुआ सूत समेटना शुरू कर दिया ...
दास्तानगो प्रियंवद ५ हिनहिनाहट, कार के इंजन, आदमियों की चीखें, लगाम पफटकारने और तराशे हुए खुरों के पटकने की ...
दास्तानगो प्रियंवद ४ दरवाजे पर तेज दस्तक हुयी। यह लड़की की दस्तक से अलग थी। इसमें संकोच और विनम्रता ...
दास्तानगो प्रियंवद ३ जब दरवाजे पर दस्तक हुयी शाम का धुंधलका शुरू हो गया था। द्घर इतना बड़ा और ...
दास्तानगो प्रियंवद २ राजाओं, नवाबों, सामंतों के ब्राह्मण मुंशी या दीवान उनकी जागीरों की आमदनी और खर्च का हिसाब ...
दास्तानगो प्रियंवद अंतिम फ़्रांसीसी उपनिवेश के अंतिम अवशेषों पर, पूरे चाँद की रात का पहला पहर था जब यह ...