Pappu Maurya ની વાર્તાઓ

रक्तरेखा - 15

by Pappu Maurya
  • 1.7k

गाँव की चौपाल पर धूल बैठी ही थी कि अचानक लोहे की खड़खड़ाहट फिर से गूँज उठी।नवगढ़ की सेना ...

रक्तरेखा - 14

by Pappu Maurya
  • 1.9k

चंद्रवा की सुबह उस दिन कुछ ज़्यादा ही शांत थी।हवा में धान की हल्की गंध तैर रही थी, तालाब ...

रक्तरेखा - 13

by Pappu Maurya
  • 1.2k

धूप ढल चुकी थी। खेतों की मेड़ों पर धुआँ तैर रहा था — कहीं धान की भूसी जल रही ...

रक्तरेखा - 12

by Pappu Maurya
  • 1.7k

रात की पहली पहर। तारे जैसे जले हुए चावल हों—छोटे, सफ़ेद, नेक। हवा में धान के कटने की गंध। ...

रक्तरेखा - 11

by Pappu Maurya
  • 1.5k

धूप के पहले धागे ने जब खपरैल की छतों पर चुपके से अपनी उँगलियाँ रखीं, तो चंद्रवा गाँव हल्के-हल्के ...

रक्तरेखा - 10

by Pappu Maurya
  • (3/5)
  • 1.6k

शाम ढल चुकी थी। मेले की रौनक अब धीरे-धीरे बुझ रही थी। ढोल-नगाड़ों की आवाज़ें थम गई थीं, पर ...

रक्तरेखा - 9

by Pappu Maurya
  • 1.7k

यह वाक्य सुबह-सुबह ही चंद्रवा गाँव की गलियों में गूँजने लगा था।बच्चों की आँखें नींद से आधी खुली थीं, ...

रक्तरेखा - 8

by Pappu Maurya
  • 1.7k

मेले से एक दिन पहले, पूरा दिन गांव व्यस्त रहा। औरतें पकवान बनाती रहीं।बच्चे उत्साह से उछलते-कूदते रहे। बुजुर्ग ...

रक्तरेखा - 7

by Pappu Maurya
  • 2k

गाँव की चौपाल पर उस सुबह एक अजीब-सी खामोशी थी। पिछली बैठक की हलचल और बहस अब भी हवा ...

रक्तरेखा - 6

by Pappu Maurya
  • 1.7k

साँझ उतर रही थी। धूप का रंग हल्का सुनहरा हो चुका था, जैसे किसी ने आकाश पर पुराने पीतल ...