Santosh Srivastav ની વાર્તાઓ

कर्म से तपोवन तक - भाग 12 (अंतिम भाग)

by Santosh Srivastav
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अध्याय 12 नदी की उर्मियाँ सूर्यास्त के सुनहले रंग से भर उठी थी। माधवी गगरी उठाकर अपने आश्रम की ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 11

by Santosh Srivastav
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अध्याय 11 वनस्थली में निर्मित स्वयंवर के लिए तैयार किया मंडप ऐसा लग रहा था मानो स्वयं विश्वकर्मा ने ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 10

by Santosh Srivastav
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अध्याय 10 गालव और माधवी संग-संग वन वीथिकाओं में चल रहे थे। किंतु अपनी इस यात्रा में गालव ने ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 9

by Santosh Srivastav
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अध्याय 9 दृष्टि से ओझल होते गालव को अपलक निहारती माधवी निश्चल खड़ी रह गई। इतने बड़े त्याग की ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 8

by Santosh Srivastav
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अध्याय 8 उत्तर दिशा की ओर जाते हुए गरुड़ सघन वृक्षों में समा गया । गालव ने कुटिया को ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 7

by Santosh Srivastav
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अध्याय 7 राजमहल के द्वार पर प्रतीक्षा करते गालव के संग माधवी चुपचाप चलने लगी। " तुम दुखी नजर ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 6

by Santosh Srivastav
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अध्याय 6 भोजनगर के राजमहल से आती भैरवी की तान और प्रातः वंदन के मधुर स्वरों ने गालव और ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 5

by Santosh Srivastav
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अध्याय 5 गालव के साथ उदास खिन्न सी माधवी चली जा रही थी। राजमहल पार करते ही दोनों गंगा ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 4

by Santosh Srivastav
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अध्याय 4 काशी नरेश दिवोदास का महल राजा के रसिक स्वभाव, रंगरेलियों के लिए प्रसिद्ध था । दिवोदास सदा ...

कर्म से तपोवन तक - भाग 3

by Santosh Srivastav
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अध्याय 3 वह गालव के पीछे-पीछे ऐसे चल रही थी जैसे उसका अपने ऊपर वश ही न रहा हो ...