Kaash aap kamine hote book and story is written by uma (umanath lal das) in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kaash aap kamine hote is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
काश आप कमीने होते ! - उपन्यास
uma (umanath lal das)
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
पाठकों की आश्वस्ति के लिए मैं यह हलफनामा नहीं दे सकता कि कहानी के पात्र, घटनाक्रम, स्थान आदि काल्पनिक हैं। किसी भी तरह के मेल को मैं स्थितियों का संयोग नहीं ठहरा रहा। इसके बाद आपकी मर्जी, इसे कहानी मानें या ना मानें ! - लेखक
पाठकों की आश्वस्ति के लिए मैं यह हलफनामा नहीं दे सकता कि कहानी के पात्र, घटनाक्रम, स्थान आदि काल्पनिक हैं। किसी भी तरह के मेल को मैं स्थितियों का संयोग नहीं ठहरा रहा। इसके बाद आपकी मर्जी, इसे कहानी ...और पढ़ेया ना मानें ! - लेखक
दुबारा शाम को भी सिन्हा जी उसी का प्रवचन सुनते हुए दफ्तर जाते। अखबार के दफ्तर में पांव पड़ते ही, दस मौडम और पांच ब्यूरो के फोन कान को चैन ही नहीं लेने देते। मुख्यालय के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग, ...और पढ़ेप्लानर के हिसाब से आई खबरों की पड़ताल, डेस्क पर आई खबरों की स्टोरी लाईन, फिर कापी राइटिंग, वैल्यू एडीशन। ओहदा बढ़ने पर भी रोज कम से दो-तीन खबरों की कापी राइटिंग वह जरूर करते। जबकि इसकी जरूरत रह नही गई थी। जिम्मेवारी काफी बढ़ गई थी। इंटरनेट संस्करण के लिए खबर देना। खबरों को पढ़ने, संपादित करने के लिए बांटना। सेंट्रल डेस्क के काल्स पर ‘सर-सर’ करना सो अलग।
लोगों को क्या मालूम कि सिन्हा जी चाट रहे हैं या झेल रहे हैं कोई फोड़ा जो फूटने का नाम नहीं ले रहा। यह कोफ्त भी तो हो सकती है उनकी, मवाद के नहीं बहने की।
कामयाबी की पैमाइश इसी ...और पढ़ेहोती है कि किस खबर का क्या इंपैक्ट रहा। ऐसे में उनकी राजूवाली ह्यूमन स्टोरी पर कहीं कार्रवाई. हो गई..तो स्साला ऐसे मे रोजी-रोटी के लिए तोमारा-मारा ही फिरेगा ना। कार्रवाई हो गई तो फिर तो राजू आईएसएम गेट के पासवाले गैरेज में न तो पंचर टायर बना सकता है और न ही स्टेशन की मोंछू चाय दुकान में कप-प्लेट ही धो सकता है। आटो हैंडल संभालनेवाले हाथ से यह सब कैसे होगा, ‘‘भोंसड़ी’ के जी भर के गाली देगा।‘ उसी की जबान में एक पंच लाईन चल पड़ती है उसके दिमाग की स्क्रीनपर। गाड़ी मालिक पर कार्रवाई होगी सो अलग। वैसे तो इस शहर में कानून की मुश्तैदी चार दिन की चांदनी है।
जले-भुने प्रसाद जी एक दिन सिन्हा जी से कहते हैं – ‘जानते हैं बास, अब बहुत जल्द हम सभी संपादक शब्द सुनने को तरस जाएंगे। जब विज्ञापन संपादक, प्रसार संपादक, व्यवसाय संपादक जैसे पद चल गए हैं तो संपादक ...और पढ़ेकी अर्थवत्ता कहां रही ! फिर वैसे पद को रखने का क्या मतलब जिसका कोई अर्थ न हो? अब आप ही कहिए सही, मालिक अखबार के जरिए अपने व्यवसाय (हित) का संपादन करता हुआ बिजनेस एडीटर बना हुआ है और संपादक नाम का जीव अब खबरों को कारपोरेट इंटरेस्ट के हिसाब से मैनेज कर रहा है यानी संपादक मालिक के हित के हिसाब से खबरों का प्रबंधक यानी न्यूज मैनेजर बन बैठा है।
सिन्हा जी – ‘बाजार में अपने स्पेस को लोकेट किए बिना आप कहीं नहीं रह सकते। अखबार अपने ढंग से पत्रकार के कौशल को खरीदता है और पत्रकार अपने कौशल से उस अवसर को खरीदता है। दोनों समझते हैं ...और पढ़ेहमने उसे उल्लू बना दिया। हां, पूरी की पूरी खेप इसी दुनिया में रहती है। एक दूसरे को उल्लू ही तो बनाते रहते हैं। खरीद-बिक्री के इस रिश्ते में खुद को रखे बगैर कोई एक कदम नहीं चल सकता।‘