Moulik Sher, book and story is written by Deepak Bundela AryMoulik in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Moulik Sher, is also popular in कविता in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मौलिक शेर - उपन्यास
Deepak Bundela AryMoulik
द्वारा
हिंदी कविता
नमस्कार दोस्तों.... ! यू तो हर इंसान की जिंदगी में कुछ ना कुछ ख़ास पल होते हैं.... जो खुशियों या ग़म के होते हैं उन्ही कुछ ख़ास पलों के एहसासो को मैंने शायरी में पिरोया हैं... जो पेश हैं "शेर -ए - शान" में..... !------------------------------------------------------------------1. ना ये आसमा होता, ना ये ज़मीं होती ना मै होता ना मिरि ये जिंदगी होती गर माँ............... तुम ना होती.... !ये मेरी माँ को समर्पित हैं जो अब इस दुनियां में नहीं हैं जिन्होंने मुझें इस काविल बनाया मै उनके इस एहसान को किसी भी तरह से नहीं चुका सकता हूं.... ------------------------------------------------------------------2. खामोशिया
नमस्कार दोस्तों.... ! यू तो हर इंसान की जिंदगी में कुछ ना कुछ ख़ास पल होते हैं.... जो खुशियों या ग़म के होते हैं उन्ही कुछ ख़ास पलों के एहसासो को मैंने शायरी में पिरोया हैं... जो पेश हैं ...और पढ़े-ए - शान" में..... !------------------------------------------------------------------1. ना ये आसमा होता, ना ये ज़मीं होती ना मै होता ना मिरि ये जिंदगी होती गर माँ............... तुम ना होती.... !ये मेरी माँ को समर्पित हैं जो अब इस दुनियां में नहीं हैं जिन्होंने मुझें इस काविल बनाया मै उनके इस एहसान को किसी भी तरह से नहीं चुका सकता हूं.... ------------------------------------------------------------------2. खामोशिया
मौलिक 'शेर' पार्ट -241. इस चेहरे की नज़ाकत को यूं ना रखो हिज़ाब में.. ! ये बिजली हैं जो रुक ना सकेगी नकाब में... !!42. हमें वेबफ़ाई की बाजीगरी नहीं आती... ! ...और पढ़े और तुम्हें बफाई की तरकीब नहीं आती.. !!43. कसक, टीस, गम, नज़र, जान और दिल से ! तन्हाई ही बेहतर हैं इन झूठे लोगों से... !!44. थक गये वो मेरी परवाह करते करते जब से वो लापरवाह हुए जिंदगी में उनके कुछ आराम सा हैं.... !45. उनकी तो फितरत थी सब से दोस्तियाने की हम तो
ये बिछड़ना भी किस काम का रहा ना हम काम के रहे ना तुम काम के रहे... !------------जब से वो अनजान क्या हुए हम तो बेजान से हो गये... !--------------चलो ये भी इलज़ाम मान लेते हैं वे बफा तुम ...और पढ़ेहम थे....!पर गलत ये भी तो नहीं मिरि हर वफ़ा से ख़फ़ा भी तो तुम थे.. !!-------------------रोज़ मर्रा ज़र्रा ज़र्रा हम जीते रहे... !तिरि यादो का गम हम पीते रहे.. !!--------------------ज़रूरी नहीं मुस्कुराने वाला ख़ुशी से ही मुस्कुराये.. !हो सकता हैं जिंदगी के गम इन मुस्कुराहटों में छिपाए... !!------------------मुस्कुराहटें तो वो मिरि रोज़ ले जाते हैं.. !और इश्क़ में मायुषगी का दाग़ हम पर