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હું ગીતકાર અને કવિયત્રી છું. મારું નામ દર્શિતા બાબુભાઇ શાહ છે . મેં કવિતા ૧૯૮૯ થી લખવાની ચાલુ કરી. ૧૯૮૯ માં મારી માતાનું અવસાન થયું . એકાંત લાગવા માંડયું. હું મારી માતાની વધારે નજીક હતી તેથી ઘણું દુઃખ થયું હતું . ત્યારે એક પંક્તિ લખી હતી. काटे नही कटता एक पल यहां । कैसे कटेगी एक उम्र भला ॥ “સખી” અને “ઐશ્વર્યા ” ના ઉપનામ થી લખું છું . ૨૫-જૂન- ૧૯૮૯. ત્યાર પછી લખવાનું ચાલું રહ્યું. પહેલા હિન્દી માં લખતી હતી. ૧૯૯૫ માં મેં નયનભાઇ પંચોલી સાથે સંગીત શીખવાનું ચાલું કર્યું.તેથી ગુજરાતીમાં લખવા માડયું. કવિતા ઓ અમદાવાદ ના લોકલ છાપામાં છપાવા માંડી. ૫૦૦ કવિતા લખી લીધા બાદ વિચાર્યુ કે તેની પુસ્તિકા છપાવી તેથી બે સંગ્રહ પ્રકાશિત કર્યા. અસ્તિત્વ અને પરસ્પર નામના બે કાવ્ય સંગ્રહ ગુજરાતી અને આરઝૂ અને કશિશ નામના બે કાવ્ય સંગ્રહ હિન્દી માં પ્રકાશિત કર્યા. અત્યાર સુધી લગભગ ૨૫૦૦ કવિતા લખી છે. જેની નોંધ ઇન્ડિયા બુક ઓફ રેકોર્ડ માં લેવામાં આવી છે . અમદાવાદ ના ગુજરાત સમાચાર, સંદેશ, દિવ્ય ભાસ્કર માં કવિતા ઓ છપાતી રહે છે . તથા ફીલીંગ્સ મલ્ટીમીડીયા મેગેઝીન, સખી, જય હિન્દ માં પણ કવિતાઓ પ્રકાશિત થતી રહે
मैं और मेरे अह्सास जहां पे रिस्तों मे ख़ुदाई बरसती है l सुनो होते है चर्चा में आफ़रीन रिश्ते ll फ़क़त रूह से अमीर इंसान ही सदा l दिल से जुड़े रहने को तल्लीन रिश्ते ll सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास वफ़ा की मिशाल कायम करने l रूहो मे रोशनी बढ़ाकर जायेगे ll सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास पिघलाके दर्द को हौसला बनाया l दिल ने फिर से आशियाँ बनाया ll वजूद को जैसे तैसे संभाल के l खुशियों का काफ़िला बनाया ll सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास मरहम बेअसर से निकले l आशिक बेख़बर से निकले ll मेहबूब को देखने के लिए l फ़िर उस डगर से निकले ll सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
❤️આંતર રાષ્ટ્રીય ચા દિવસની શુભેચ્છાઓ. चलो साथ में एक चाय हो जाए l चाय संग प्यार हाय फाय हो जाए ll सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास फ़िर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं l दिलों जान निसार करते हैं ll कभी भी बावफा हो न सकें वो l आज वफ़ा का दम भरते हैं ll एक लम्हा भी सुकून ना दे सके l और अब चै न ओ करार हरते है ll मुहब्बत ने दिया रुस्वाई का गम l क्यूँ दिल में खास जगह रखते है? एक बार जी भर के देखने के लिए l छत पर अड्डा जमाए रहते हैं ll २०-५-२०२२ सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास तेरा ज़िक्र मेरी रूह तक को हिला देता है l तेरी फ़िक्र मेरी रूह तक को हिला देती है l इस तरफ़ नाता जुड़ गया है जमनोमनं का l तुझसे दूर होने का ख्याल मेरी जान लेती है l कल क्या होगा मेरे जाने के बाद इस वास्ते l तेरी लिए एक एक साँस सजोए समेटी है ll १९-५-२०२२ सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास खुदाया मेरी कब्र पे गुलाब चढ़ाने न आया करो l दिल मे दफन किये हुए अह्सास जिंदा हो जाते हैं ll १८-५-२०२२ सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास मैं नारी हूँ , अपराजिता हूँ l न झुकुंगी, न रुकूंगी, न रोउंगी, न डरूँगी l हौसलों के साथ आगे कदम बढाउंगी l कोई जंजीरें मेरे पाँव बाँध नहीं सकतीं l कोई तूफ़ाँ, कोई आँधी मुझे नहीं रोक सकती l न थकुंगी न हार मानूंगी, लक्सय पाऊँगी l रण में रणचंडी, घर में बच्चों की माँ बनुँगी ll हाँ मैं नारी हूँ, अपराजिता ही बनी रहूँगी ll १७-५-२०२२ सखी दर्शिता बाबूभाई शाह
मैं और मेरे अह्सास धूप में पेड़ की छाया में रुकना है l आज सूर्य के ताप को भूलना है ll क़ायनात मे किसी से डरना नहीं l सिर्फ़ ख़ुदा के सामने झुकना है ll अच्छा बूरा सभी यहां भुगतना l कर्मों के हिसाबो से डरना है ll मुहब्बत मे मिला जो गम तो l ममता की गोद मे फ़सना है ll कईं ग़मों से घिरे हुए हैं लोग l सब को हसाके अब हसना है ll १६-५ -२०२२
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